Thursday, January 14, 2016

तुम और सागर : गौतम कश्यप

तुम और सागर : गौतम कश्यप
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अगर है तुम्हारे अन्दर ठसक
या कठोरता
तो सागर होगा ठरल
और मुस्कुरायेगा
मंद - मंद
दुर्भावनापूर्ण...

अगर है आँखों में गहराई
तो सागर होगा शांत,
निश्छल
उड़ेलेगा अपनी भावनाएं
अनंत लहर,
मधुर स्वर के सहारे

अगर है तुम्हारे अंदर घृणा
तो दूर कर देगा तुम्हें
वैसे ही, जैसे फेंकता है
बलबलाती फेन को
अपने से दूर,
किनारे

अगर हो एकाकी,
तो अन्दर से देगा सहारा.
नाव की भांति
प्रेरित करेगा
आगे बढ़ने को
बीच झंझावातों से.

अगर है समर्पण
तो तपाकर, बनाएगा तुम्हें बादल
और भेजेगा दूर
विशाल नभ में
जहाँ से बरसकर
तुम रच सको  धरती पर खुशियाँ

अगर आप हैं प्यार में ...

अगर आप हैं प्यार में ...
गौतम कश्यप



अगर आप हैं प्यार में ...
तो, सुबह जल्दी उठ सकते हैं
शाम को देर से लौट सकते हैं
प्यार में हैं यदि ..., आप कुछ भी करेंगे...

बाहर ठंढ में सड़क पर दलकेंगे
या गर्म मुलाक़ात के स्वप्न देखेंगे
बनायेंगे, नित नई योजनायें ...
सीमांत से परे विचरेंगे...

कोमल झुर्रियां और बाल पके
नजरअंदाज करेंगे
“अभी शाम है ढली नहीं ...”, ऐसा कुछ गुनगुनायेंगे.
हाथ में हाथ डाले, 
संग संग टहलना, याद करेंगे ..
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गौतम कश्यप

मेरी आत्मा, रुक जाओ, मत मरो : गौतम कश्यप

मेरी आत्मा, रुक जाओ, मत मरो : गौतम कश्यप

Gautam Kashyap @ Palika Stadium, Kanpur

मेरी आत्मा, रुक जाओ, मत मरो
तुमने अच्छे से सीखा है पीड़ित होना,
थोड़ा धैर्य रखो,
अभी ढेरों काम हैं बचे, मिलजुल निपटाने को
मेरी आत्मा, रुक जाओ, मत मरो

खालीपन है कहाँ? बहस मत करो,
करता हूँ कोशिश, कि चोट न पहुंचे तुम्हें
झूठ सुन मत घबड़ाओ,
कहने वालों की मंशा पहचानो
मेरी आत्मा, रुक जाओ, मत मरो

तुम्हारी कसम, जो मुझे न सुनो
ज़रा मुझे सांस तो लेने दो
ताकि मिटा सकूँ, तुम्हारे भीतर पड़े संदेह को
मेरी आत्मा, मुझे ज़रा महसूसो तो
मेरी आत्मा, रुक जाओ, मत मरो
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गौतम कश्यप

Wednesday, January 13, 2016

Fekete Ország : Babits Mihály

Fekete Ország by Babits Mihály
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हंगारी भाषा में ‘बोबित्स मिहाय’ की इस बोझिल कविता में अद्भुत लय है. मूल भाषा के स्तर का अनुवाद तो मैं नहीं ही कर पाउँगा, लेकिन यदि आप इस कविता को मूल भाषा में सुनेंगे तो महसूसेंगे, मानो धड़धड़ाती हुई रेलगाड़ी आपके सामने से गुजर गई. जब हंगरीवासी इसे जोश-ओ-जूनून से पढ़ते हैं तो कसम से मजा आ जाता है. वैसे आप इसे यूट्यूब पर सुन सकते हैं. इसके लिए आपको दी हुई ‘कड़ी’ पर चूहे से चटका लगाना होगा : https://www.youtube.com/watch?v=elFSyE8LUXE



देखता हूँ स्वप्न, काली धरा का
जहाँ हों, सबकुछ काले
सब कुछ काले
सिर्फ बाहर से ही नहीं...
अस्थि ही नहीं,
अस्थिमज्जा भी काली.
काली
काली, काली, काली
काला नभ, काला समुद्र
काले पेड़, काले घर
काले पशु, काले मानव
काली खुशियाँ, काले दर्द
काले अयस्क, काले पत्थर
काली धरती, काले पेड़
काली, काली, काली दुनिया
........................
(पूरी कविता का अनुवाद नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि कवि की दुनिया में आगे भी सबकुछ काले ही मिलने वाले हैं  :)  )
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गौतम कश्यप

Lecture and Interaction with Russian Language Teachers at Banaras Hindu University

  I had the pleasure of meeting with Russian language teachers at Banaras Hindu University and delivering a lecture to future Russian langua...