Monday, December 31, 2012

हम लोहार : फिलिप श्क्युलोव


हम लोहार
(मी कुज्न्येत्सी)
रचनाकार : फ़ि‍लिप श्क्युलोव
 
रूसी भाषा से अनुवाद और गीत का परिचयः गौतम कश्यप




हम लोहार हैं, और हमारी आत्मा है जवान
हम बनाते हैं खुशियों की चाबियाँ।
ऊपर उठते हैं, हमारे मजबूत हथोड़े,
और बजड़ते हैं, फौलादी सीने पर, ठक ठक ठक!

हम कर रहे हैं स्थापित, एक उज्ज्वल पथ,
और निर्मित कर रहे हैं एक स्वतंत्र पथ,
सबके लिए, जो है लम्बे समय से इच्छित।
मिलकर लड़ाइयाँ लड़ी हैं हमने, और हम साथ मरेंगे मरेंगे मरेंगे!

हम लोहार हैं, अपनी प्रिय जन्मभूमि के
हम केवल चाहते हैं, सबकुछ अच्छा,
हम अपनी ऊर्जा व्यर्थ नष्ट नहीं कर रहे हैं,
निरुद्देश्य नहीं चल रहे हमारे हथोड़े , ठक ठक ठक!

और हथोड़े की हर चोट के बाद
धुन्ध छँटेगी, अत्याचार का नाश होगा।
और सारी पृथ्वी के क्षेत्रों के साथ
एक दीन राष्ट्र, उठेगा, उठेगा, उठेगा!
हम लोहार हैंयह रूसी गीत उन दिनों बहुत प्रसिद्ध हुआ था जब सोवियत संघ में महान समाजवादी अक्टूबर क्रान्ति अपने चरम पर थी। 1912 ईस्वी में फ़ि‍लिप श्क्युलोव ने इसकी रचना की थी। 14 वर्षीय किशोर फ़िलिप एक ग़रीब दम्पति की सन्तान था जो काम की तलाश में शहर गया। वहाँ उसे एक कारख़ाने में काम मिला लेकिन एक दिन दुर्घटनावश उसका दाहिना हाथ मशीन के अन्दर चला गया और वह बुरी तरह जख्मी हो गया। उन दिनों कारख़ानों में ऐसी दुर्घटनाएँ आम बात थी। पूँजीपति वर्ग मज़दूरों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति बिल्कुल बेपरवाह था। इस दुर्घटना के बाद फ़िलिप दो साल तक अस्पताल में पड़ा रहा और उसके बाद फिर काम की खोज में निकल पड़ा। उसने छोटी-सी उम्र में ही कविताएँ लिखना प्रारम्भ कर दिया था, जिसमें उसके एवं मज़दूरों के कठिन जीवन की व्यथाओं और इच्छाओं का सजीव चित्रण होता था।
फ़िलिप द्वारा रचित गीत हम लोहारको तात्कालिक रूसी ज़ार सरकार ने प्रतिबन्धित कर दिया था, लेकिन उसके बावजूद यह गीत मज़दूरों के दिलों में गूँजता रहा। सन 1917 से यह गीत मार्गदर्शक के रूप में मज़दूर वर्ग को आत्मबल प्रदान करता रहा एवं उनके संघर्षों के फ़लस्वरूप महान समाजवादी अक्टूबर क्रान्ति में शोषितों की विजय हुई.

Published in newspaper "Mazdoor Bigul"
Date : 20 - August - 2014
Link : http://www.mazdoorbigul.net/wp-content/uploads/2014/08/Mazdoor-Bigul_August2014.pdf
Page No. - 13

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